Loan Rules: कभी‑कभी ज़िंदगी में कुछ फैसले हमारे पूरे भविष्य को आकार दे देते हैं। ऐसा ही एक फैसला होता है loan लेना। नौकरी नई होती है, ज़रूरतें अचानक बड़ी हो जाती हैं और पैसा एक साथ हाथ में नहीं होता। ऐसे में लोन एक सहारा बनता है। लेकिन पहली बार लोन लेना जितना आसान लगता है, उतना होता नहीं।
कई लोग बिना सही जानकारी के लोन के चक्कर में फंस जाते हैं और बाद में उन्हें भारी पछतावा होता है। अगर आप भी पहली बार लोन लेने की सोच रहे हैं, तो कुछ गलतियाँ हैं जो बहुत आम हैं, लेकिन जिनसे बचना बेहद ज़रूरी है। नहीं तो आपकी EMI आपकी ज़िंदगी की खुशी तक खा जाएगी।
बिना समझे EMI प्लान चुन लेना
ज्यादातर लोग जब लोन लेते हैं, तो सिर्फ एक ही चीज़ पर ध्यान देते हैं – EMI कितनी बन रही है। उन्हें लगता है कि अगर EMI कम है तो लोन अच्छा है। लेकिन ऐसा सोचना एक बड़ी भूल है।
कम EMI का मतलब अक्सर लंबी अवधि होता है, जिससे ब्याज का बोझ बढ़ता चला जाता है। हो सकता है ₹5 लाख के लोन पर आप सिर्फ ₹10,000 की EMI दें, लेकिन 7 साल तक हर महीने देते रहें, तो आपने असल में ₹8 लाख से भी ज़्यादा चुका दिए।
EMI चुनते समय सिर्फ मासिक बोझ नहीं, बल्कि कुल ब्याज को भी ध्यान में रखें। कोशिश करें कि EMI आपकी सैलरी का 30–35% से ज़्यादा न हो।
ब्याज दर में छिपे झांसे को न समझना
कई बार बैंक या NBFCs आकर्षक offers दिखाते हैं – जैसे 10% per annum interest rate. लेकिन जब आप बारीकी से कागज़ात पढ़ते हैं तो पता चलता है कि वो flat rate है, न कि reducing balance पर।
Flat rate में ब्याज पूरे loan amount पर हर साल लगता है, जबकि reducing balance में जितना मूलधन बाकी है, उसी पर ब्याज लिया जाता है। ये छोटा सा फर्क आपकी जेब पर बहुत भारी पड़ सकता है। इसलिए लोन लेने से पहले ये ज़रूर पूछिए कि ब्याज दर reducing balance पर है या flat rate पर।
Hidden charges को नजरअंदाज़ कर देना
जब कोई पहली बार लोन लेता है, तो उसकी पूरी नजर सिर्फ principal और EMI पर रहती है। लेकिन असली झटका तब लगता है जब account में ₹5 लाख की बजाय ₹4.90 लाख ही आते हैं।
Processing fee, insurance charges, documentation fee – ये सब quietly आपके loan से काट लिए जाते हैं। और अगर आप early repayment या foreclosure करना चाहें तो उस पर भी penalty लग सकती है।
लोन लेने से पहले इन सभी hidden charges को लिखित में जान लीजिए और compare कीजिए दूसरे options से। यही चीज़ बाद में regret से बचाएगी।
सिर्फ एक ही बैंक से बात करना
अक्सर लोग जिस बैंक में उनका salary account होता है, उसी से लोन लेने का फैसला कर लेते हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं कि वही बैंक सबसे अच्छा लोन ऑफर कर रहा हो।
हर बैंक की terms अलग होती हैं – ब्याज दर, tenure, charges और customer service। इसलिए कम से कम 3–4 बैंक और NBFC से बात करें, उनकी शर्तें समझें और फिर सोच-समझकर फैसला लें।
याद रखिए, loan एक commitment होता है, और एक बार contract sign हो गया तो वापस मुड़ना आसान नहीं होता।
ज़रूरत से ज़्यादा लोन ले लेना
कई बार हमें ₹3 लाख की ज़रूरत होती है लेकिन बैंक ₹5 लाख approve कर देता है और हम खुशी-खुशी वो भी ले लेते हैं। ये सोचते हैं कि बाद में किसी काम आ जाएगा। लेकिन ये एक बड़ा trap होता है।
जितना बड़ा लोन, उतना ज्यादा interest और उतनी लंबी फाइनेंशियल जिम्मेदारी। पैसा हाथ में आना जितना आसान लगता है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल होता है उसे सही तरीके से चुकाना।
इसलिए लोन हमेशा उतना ही लें, जितनी आपकी सच्ची ज़रूरत हो। ज़रूरत से ज़्यादा लेने का मतलब है खुद की जेब पर खुद ही हमला करना।
निष्कर्ष
लोन लेना गलत नहीं है, लेकिन बिना सोच-समझ के लोन लेना आपकी ज़िंदगी को भारी कर सकता है। पहली बार लोन लेने जा रहे हैं, तो वक्त निकालिए, हर छोटी-बड़ी बात को समझिए और तभी कदम उठाइए।
थोड़ा रिसर्च, थोड़ी बातचीत और थोड़ी समझदारी आपको भारी EMI और सालों की परेशानियों से बचा सकती है। याद रखिए, सही लोन वही है जो आपको बोझ नहीं बनता, बल्कि मदद करता है।
Disclaimer: यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी देने के लिए तैयार किया गया है। किसी भी फाइनेंशियल फैसले से पहले संबंधित बैंक या वित्तीय सलाहकार से विस्तार में जानकारी लेना ज़रूरी है।